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Tuesday, June 5, 2012

रहस्यमयी विक्टोरिओ पीक पर आज भी है खुफिया खजाना !



न्यू मैक्सिको की हैंब्रिलो घाटी में पहाड़ी इलाका है विक्टोरिओ पीक। 1880 में विक्टोरिओ के अपाचे आदिवासियों व अमेरिकी सेना के ‘बफेलो सोल्जर्स’ के बीच युद्ध हुआ था। इस दौरान अपाचे के मुखिया ‘चीफ विक्टोरिओ’ यहां छिपा करते थे। उन्हीं के नाम पर इस चोटी का नाम रखा गया। 1937 में मिल्टन डॉक नॉस नामक व्यक्ति शिकार करते हुए पहाड़ पर पहुंच गया। पानी की तलाश में उन्हें जमीन में एक सुराख मिला।

ये एक सुरंग में प्रवेश का खुफिया रास्ता था, जिसमें उतरने के लिए सीढ़ियां बनी थीं। मिल्टन नीचे उतरते हुए एक बड़ी गुफा में पहुंच गए। वहां उन्हें एक बक्सा मिला, जिस पर पुरानी अंग्रेजी में ‘सील्ड सिल्वर’ लिखा था। वे कहते हैं कि ये खजाने का एक छोटा-सा हिस्सा था। वहां सोने-चांदी की बहुत सी सिल्लियां और जेवर थे। आज के हिसाब से यह खजाना करीब 170 करोड़ डॉलर का था। इसके बाद मिल्टन हमेशा खजाने के किस्से अपनी पत्नी ओवा बैकविथ और पोते टैरी डेलोनास को सुनाते थे।

टैरी को इतिहास खंगालने का शौक था और ओवा को एडवेंचर का। फिर वे पहाड़ के भीतर उतरने वाली हर सुरंग को खंगालने लगे। एक सुरंग में उतरने पर उन्हें 79 नरकंकाल मिले। वहां पर कबाड़ हो चुकी बार भी मिलीं। मिल्टन ये बार पत्नी को दिखाने के लिए लाए। ओवा ने बार को घिसकर बताया कि ये पीले रंग की है और सोने की हो सकती है। मिल्टन ने कहा अगर वहां पड़ा सारा कबाड़ा सोना है तो वहां ऐसी कम से कम 16,000 सिल्लियां हैं। विक्टोरिया पीक की गुफाओं में छिपे खजाने को लेकर चार थ्योरी दी जाती हैं। पहली ये कि खजाना जुआन डे ऑनेट का है, जिन्होंने न्यू मैक्सिको में स्पेनिश कॉलोनी बसाई थी। दूसरी थ्योरी है कि खजाना कैथलिक मिशनरी फादर लारूए का हो सकता है। 18वीं सदी के अंत में यह मिशनरी यहां सोने की खदानें चलाती थीं। तीसरी के अनुसार यह मैक्सिकन राजा मैक्सिमिलियन का है, जो अपनी हत्या की योजना पता चलने के बाद खजाना मैक्सिको के बाहर पहुंचाना चाहते थे। चौथी थ्योरी है कि अपाचे आदिवासियों ने गुफाओं में सोना भरा है।

खजाना कहां से आया मिल्टन को इससे कोई मतलब नहीं था। खजाना तलाशने के छह महीने बाद वे इस पर अपना हक जताने के कानूनी रास्ते तलाशने लगे। उन्होंने विक्टोरिओ पीक और उसके आसपास के इलाके की लीज लेने की अर्जी दाखिल की। चश्मदीद बताते हैं कि दो साल के अंदर वे वहां से करीब 200 सोने की सिल्लियां निकालकर लाए, जिन्हें उन्होंने कहां छिपाया इसकी जानकारी परिवार को भी नहीं थी। उस समय के नियमों के अनुसार वहां सोना जेवर के रूप में ही रखा जा सकता था। मिल्टन के पोते टैरी के अनुसार दादा ने रेगिस्तान में कई स्थानों पर सोना छिपाया था। जगह की पहचान के लिए वे उस पर अलग रंग का पत्थर रख दिया करते थे, जिससे वह स्थान आसपास के प्राकृतिक माहौल में मिल जाए। 1939 में मिल्टन ने इस काम के लिए माइनिंग इंजीनियर मॉन्टगोमरी को काम पर रखा। उनकी इच्छा थी कि डायनामाइट ब्लास्ट से सुरंग गहरी की जाए लेकिन ब्लास्ट से पूरा हिस्सा गिर गया और रास्ता बंद हो गया और करीब नौ साल तक मिल्टन ब्लैक मार्केट में सोना बेचते रहे।

1948 में मिल्टन की डील चार्ली राएन नामक व्यक्ति से हुई। मिल्टन को लगा चार्ली उससे धोखा कर सकता तो उसने सोना फिर छिपा दिया। टैरी बताते हैं कि फिर दोनों में विवाद हुआ। चार्ली ने 5 मार्च 1949 पिस्तौल निकालकर सोने का ठिकाना पूछते हुए गोली चला दी और मिल्टन की वहीं पर मौत हो गई। फिर बहुत से लोगों ने खजाना तलाशने की कोशिश की थी। तीन साल तक उनकी पत्नी और बगो भी दोबारा गुफा का रास्ता बनाने में लगे रहे। 1952 में वे अपनी मंजिल से महज बारह गज दूर थे कि फिर से अनहोनी हो गई। मैक्सिको सरकार ने उनसे इस स्थान की लीज वापस ले ली, क्योंकि अमेरिकी सेना के वाइट सैंड मिसाइल की रेंज बढ़ाना थी। बाद में स्टैंनफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक लैंबर्ट डॉल्फिन ने कहा था कि उन्होंने रडार पर करीब 300 से 400 फीट गहराई में ध्वनी तरंगें तेजी से टकराती दिखी थीं। इसका मतलब विक्टोरिओ पीक पर खजाना आज भी है लेकिन वह अधिक गहराई में पहुंच गया है।
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इसका रास्ता पाताल की ओर जाता है



रायपुर।छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर से 120 किमी दूर और शिवरीनारायण से 3 किमी दूरी पर खरौद नगर है। यह क्षेत्र एक समय में प्राचीन छत्तीसगढ़ के पांच ललित केन्द्रों में से एक है।

इस क्षेत्र को मोक्षदाई नगर माने जाने के कारण इसे छत्तीसगढ़ की काशी भी कहा जाता है। यहां रामायणकालीन अति प्राचीन लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर हैं। रतनपुर के राजा खड्गदेव ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। विद्वानों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण काल छठी शताब्दी माना गया है।

इस मंदिर के निर्माण के पीछे की कथा बड़ी ही रोचक है। साथ ही इस मंदिर का निर्माण कुछ इस तरह किया गया है कि सुनने वाले और सुनाने वाले को इस पर यकीन करना मुश्किल होगा। इस मंदिर में भगवान शिव का लिंग है, जिसमें एक लाख छिद्र हैं, इस कारण इसे लक्षलिंग कहा जाता है, इसमें से एक छिद्र पातालगामी हैं, जिसमें कितना भी पानी डाला जाए, उतना ही समाहित हो जाता है, छिद्र के बारे में कहा जाता है कि इसका रास्ता पाताल की ओर जाता है।

इसके निर्माण की कथा यह है कि रावण का वध करने के बाद श्रीराम को ब्रह्म हत्या का पाप लगा, क्योंकि रावण एक ब्राह्मण था। इस पाप से मुक्ति पाने के लिए श्रीराम और लक्ष्मण रामेश्वर लिंग की स्थापना करते हैं। शिव के अभिषेक के लिए लक्ष्मण सभी प्रमुख तीर्थ स्थलों से जल एकत्रित करते हैं।

इस दौरान वे गुप्त तीर्थ शिवरीनारायण से जल लेकर अयोध्या के लिए निकलते समय रोगग्रस्त हो गए। रोग से छुटकारा पाने के लिए लक्ष्मण शिव की आराधना की, इससे प्रसन्न होकर शिव दर्शन देते हैं और लक्षलिंग रूप में विराजमान होकर लक्ष्मण को पूजा करने के लिए कहते हैं। लक्ष्मण शिवलिंग की पूजा करने के बाद रोग मुक्त हो जाते हैं और ब्रह्म हत्या के पाप से भी मुक्ति पाते हैं, इस कारण यह शिवलिंग लक्ष्मणेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
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करीब 1.6 लाख लोगों को यहां ज़िंदा जलाया गया था



भूतहा द्वीप : करीब 1.6 लाख लोगों को यहां ज़िंदा जलाया गया था
इटली के प्रोवेग्लिया आईलैंड की तस्वीरों को देखकर इसकी तारीफ किए बिना नहीं रह सकते। फिर भी यहां की कहानी इसके विपरीत है। आज ये पूरी तरह वीरान है। उत्तरी इटली की वेनेटियन लगून्स में स्थित इस आईलैंड पर जाना प्रतिबंधित है। सिर्फ शराब की फसल के समय पर ही लोग यहां जाते हैं। मछुआरे भी इसके पास मछली पकड़ने नहीं जाते। उनके जाल में कई बार मरे इंसानों की हड्डियां फंसती हैं।

1960 के दशक में वहां की सरकार ने इसे एक प्राइवेट मालिक को बेचा था। वह यहां कुछ ही दिन रहा और ये जगह छोड़ गया। इसके बाद एक परिवार ने इसे हॉलिडे होम बनाने के लिए खरीदा लेकिन वे भी यहां सिर्फ एक दिन टिक सके। कहा जाता है कि उनकी बेटी का मुंह चिर गया था और उसे जोड़ने के लिए चौदह टांके लगाने पड़े थे। इस तरह ये खूबसूरत आईलैंड भूतहा बन गया। यह कहानी रोमनकाल से शुरू होती है।

कहते हैं उस समय प्लेग के मरीजों को यहां लाकर छोड़ दिया जाता था। सदियों बाद ब्लैक डैथ (काला बुखार) के समय भी आईलैंड का ऐसा इस्तेमाल जारी रहा। इससे मरने वालों को यहां लाकर एक साथ दफना दिया जाता था। इस बीमारी के मरीजों को यहां जिंदा जलाया भी जाता था। करीब 1.6 लाख लोगों को यहां जलाया गया होगा। आज भी यहां जमीन पर राख और मानव अवशेषों की परत जमी हुई देखी जा सकती है।

1922 में यहां मानसिक रोगियों का बड़ा अस्पताल बनाया गया, जिसमें बैल टॉवर भी था। यहां के डॉक्टर्स और नर्सो को कुछ भी असामान्य नजर नहीं आया लेकिन पागल मरीजों को यहां प्लेग के मरीजों के भूत नजर आते थे। बाद में डॉक्टर्स का भी ऐसा अनुभव रहा। इसके बाद भी सच की तलाश में गए लोग यहां से जिंदा लौटकर नहीं आ सके और ये आईलैंड हमेशा के लिए वीरान हो गया।
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