Friday, October 19, 2012

Sanskrit is the oldest Language in the World


संस्कृत विश्व की सब से प्राचीन भाषा है तथा समस्त भारतीय भाषाओं की जननी है। संस्कृत काशाब्दिक अर्थ है परिपूर्ण भाषा। संस्कृत पू्र्णतया वैज्ञायानिक तथा सक्षम भाषा है। संस्कृत भाषा के व्याकरण नें विश्व भर के भाषा विशेषज्ञ्यों का ध्यानाकर्षण किया है तथा उन के मतानुसार भी यह भाषा कम्पयूटर के उपयोग के लिये सर्वोत्तम भाषा है। संस्कृत भाषा की लिपि देवनागरी लिपि है।

इस भाषा को ऋषि मुनियों ने मन्त्रों की रचना कि लिये चुना क्योंकि इस भाषा के शब्दों का उच्चारण मस्तिष्क में उचित स्पन्दन उत्पन्न करने के लिये अति प्रभावशाली था। इसी भाषा में वेद प्रगट हुये, तथा उपनिष्दों, रामायण, महाभारत और पुराणों की रचना की गयी। मानव इतिहास में संस्कृत का साहित्य सब से अधिक समृद्ध और सम्पन्न है।

संस्कृत भाषा में दर्शनशास्त्र, धर्मशास्त्र, विज्ञान, ललित कलायें, कामशास्त्र, संगीतशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र, हस्त रेखा ज्ञान, खगोलशास्त्र, रसायनशास्त्र, गणित, युद्ध कला,कूटनिति तथा महाकाव्य, नाट्य शास्त्र आदि सभी विषयों पर मौलिक तथा विस्तरित गृन्थ रचे गये हैं। कोई भी विषय अनछुआ नहीं बचा। संस्कृत की गूंज कुछ साल बाद अंतरिक्ष में सुनाई दे सकती है। अमेरिका संस्कृत को ‘NASA’ की भाषा बनाने की कसरत में जुटा है क्योंकि संस्कृत ऐसी प्राकृतिक भाषा है जिसमें सूत्र के रूप में कंप्यूटर के जरिए कोई भी संदेश कम से कम शब्दों में भेजा जा सकता है।

रूसी, जर्मन, जापानी, अमेरिकी सक्रिय रूप से हमारी प्राचीन संस्कृत पुस्तकों से नई चीजों पर शोध और खोज कर रहे हैं और उन्हें वापस दुनिया के सामने अपने नाम से रख रहे हैं। दुनिया के 17 देशों में एक या अधिक संस्कृत विश्वविद्यालय संस्कृत के बारे में अध्ययन और नई प्रौद्योगिकी प्राप्तकरने के लिए जुटे हैं, लेकिन संस्कृत को समर्पित उसके वास्तविक अध्ययन के लिए एक भी संस्कृत विश्वविद्यालय भारत में नहीं है। भारत की सरकार और लोगों को भी अब जागना चाहिए और अँग्रेजी की गुलामी से बाहर निकाल कर अपनी भाषा और संस्कृति पर गर्व करना चाहिए।

भारत सरकार को भी ‘संस्कृत’ को नर्सरी से ही पाठ्यक्रम में शामिल करके देववाणी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाना चाहिए। केवल संस्कृत ही भारत के प्राचीन इतिहास तथा विज्ञान को वर्तमान से जोडने में सक्षम है। यदि हम भारत में संस्कृत की अवहेलना करते रहे तो हम अपने समूल को स्वयं ही नष्ट कर दें गे जो सृष्टि के निर्माण काल से वर्तमान तक की अटूट कडी है।और प्राचीन ऋषियों का ज्ञान संग्रहीत है, यानि हमारी ज्ञान धरोहर इसमें ही है! नहीं तो फिर हमें संस्कृत सीखने के लिये विदेशों में जाना पडे गा।

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