Friday, June 15, 2012
खुदीराम बोस
श्री त्रिलोक्यनाथ बोस के पुत्र रूप में खुदीराम बोस का जन्म 3दिस्म्बर,1889 को ग्राम्य हबीबपुर,जनपद-मिदनापुर,प0बंगाल में हुआ।स्वदेशी आन्दोलन में शिरकत करने के लिए खुदीराम बोस ने नवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी।माता व पिता दोनो जनों का स्वर्गवास अल्पायु में ही हो गया।खुदीराम बोस का जन्म भारत वर्ष में आजादी के लिए लड़ने व क्रांति मार्ग को प्रज्जवलित करने के लिए ही हुआ था।
28फरवरी,1906 को ब्रितानिया हुकूमत के खिलाफ परचा बांटने के जुर्म में पुलिस सिपाही ने आपको पकड़ लिया।इस समय मात्र 15वर्षीय खुदीराम बोस ने सिपाही को एक जोरदार तमाचा मारा और उससे अपना हाथ छुड़ा कर भाग निकले।1अप्रैल,1906 को मिदनापुर के जिलाधीश की उपस्थिति में भी खूदीराम बोस ने वन्देमातरम् का उद्घोष किया व पर्चे बांटे तथा वहां से भी फरार हो लिए।31मई,1906 को छात्रावास में सोते समय ही पुलिस खुदीराम बोस को गिरफतार कर पाई थी।बंग-भंग आंदोलन के समय कलकत्ता का मुख्य मजिस्टेट किंग्सफोर्ड था।इसके दमन चक्र ने सारी हदें तोड़ दी थी।28मार्च,1908 को किंग्सफोर्ड़ का तबादला मुजफफरपुर,बिहार कर दिया गया।
खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी को किंग्सफोर्ड़ को मारने का कार्य सौंपी गया।30अप्रैल,1908 को रात के 8बजे दोनों लोग यूरोपीयन क्लब पहुंचे । वहां किंग्सफोर्ड़ की गाड़ी के धोखें में कैनेड़ी परिवार की गाड़ी को बम चलाकर नष्ट कर दिया।फिर चाकी समस्तीपुर स्टेशन की तरफ तथा खुदीराम बोस बेनीपुर स्टेशन की तरफ भागे।चाकी ने 1मई,1908 को पुलिस द्वारा पकड़े जाने अपनी ही गोली से अपनी जान दे दी।उधर 20-25 किमी पैदल चनने के बाद पुलिस के दो सिपाहियों ने खुदीराम बोस को दो रिवाल्वर,37कारतूस व नक्शों के साथ हिरासत में लिया।खुदीराम बोस को 21मई,1908 को मुजफफरपुर के मजिस्टेट के सामने पेश किया गया।वहां से अपराध स्वीकृति के बाद 25मई,1908 को सेशन्स कोर्ट भेजा गया तथा 8जून,1908 को सेशन्स कोर्ट में सुनवाई हुई।जज ने खुदीराम बोस को फांसी की सजा दी।6जुलाई,1908 को हाईकोर्ट में अपील की गई।जिसकी सुनवाई 13जुलाई,1908 को हुई।अभी खुदीराम की उम्र 18 वर्ष की भी नहीं थी लेकिन फांसी की सजा हाईकोर्ट ने बरकरार रखी।
फांसी के दिन 11अगस्त,1908 को खुदीराम बोस का वनज दो पौण्ड़ बढ़ गया था।प्रातः6बजे उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया था।गंड़क नदी के तट पर खुदीराम बोस के वकील श्री करलीदास मुखर्जी ने उनके चिता में आग लगाई।हजारों की संख्या में युवकों का समूह एकत्रित था।चिता की आग से निकली चिंगारियां सम्पूर्ण भारत में फैली।चिता की भस्मी को लोगों ने अपने माथे पर लगाया,पुड़िया बांध कर घर ले गये।खुदीराम बोस ही प्रथम शख्स हैं जिन्होंने बीसवीं सदी में आजादी के लिए फांसी के तख्ते पर अपने प्राणों की आहुति दी थी।
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