Showing posts with label True or False. Show all posts
Showing posts with label True or False. Show all posts

Wednesday, June 13, 2012

आदिवासी कौन ?



कुछ लोग बातचीत या लेखन में प्रायः कुछ विशेष रंग-रूप वाले लोगों के लिए 'आदिवासी' शब्द का प्रयोग करते हैं। सच तो यह है कि अंग्रेजों ने उनमें और शेष भारतवासी हिन्दुओं में फूट डालने के लिए यह शब्द गढ़ा था। उन्होंने कहा कि भारत के शहरों और गांवों में रहने वाले हिन्दू तो आर्य हैं, जो बाहर से आये और व्यापार तथा खेती पर अधिकार कर लिया। उन्होंने यहां के मूल निवासियों को वन और पर्वतों में खदेड़ दिया। अंग्रेजों ने कई इतिहासकारों को अपने जाल में फंसाकर यह सिद्धान्त पाठ्यपुस्तकों में भी शामिल करा लिया। इस कारण गुलामी काल में हम यही पढ़ते और समझते रहे।

पर अंग्रेजों के जाने के बाद भी इतिहास की इस भयानक भूल को सुधारा नहीं गया। यह सिद्धान्त पूर्णतः भ्रामक है। जैसे नगरों में रहने वाले नगरवासी हैं, वैसे ही ग्रामवासी, पर्वतवासी और वनवासी भी हैं। मौसम, खानपान और काम के प्रकार से लोगों के रंग-रूप में परिवर्तन भले ही हो जाए; पर इससे वे किसी और देश के वासी नहीं हो जाते। श्रीराम ने लाखों वर्ष पूर्व इन्हीं वन और पर्वतवासियों को साथ लेकर तब से सबसे बड़े आतंकवादी रावण को मारा था।

श्रीराम और श्रीकृष्ण का वंशज होने के नाते मैं तो स्वयं को इसी भारतभूमि का आदिवासी मानता हूं। मेरे पुरखे लाखों-करोड़ों वर्ष से यहीं रह रहे हैं। जो अंग्रेज और अंग्रेजपरस्त इतिहासकारों के झूठे सिद्धान्तों पर विश्वास कर स्वयं को भारत का आदिवासी नहीं मानते, मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि वे किस देश, दुनिया या ग्रह के आदिवासी हैं; वे कितने साल या पीढ़ियों से यहां रह रहे हैं; वे कब तक इस पावन धरा पर बोझ बन कर रहेंगे और अपने पुरखों के संसार में ही क्यों नहीं चले जाते ?
Read More »

क्या हम ज़िंदा हैं?



जन्म और मृत्यु जीवन के दो विपरीत ध्रुव हैं.एक शुरूआत है तो दूसरा अंत.जो भी है बस इन्हीं दो ध्रुवों के बीच है.जब भी किसी महापुरुष या महास्त्री की जयंती या पुण्यतिथि आती है तो उनके नाम पर राजनीति करने वाले लोग यह कहना नहीं भूलते कि वे आज भी हमारे दिलों में जिंदा हैं.यूं तो उत्तरोत्तर बढती महंगाई ने जीवन को महंगा बना दिया है.लेकिन कई बार हमें जिंदा रहने के लिए बहुत बड़ा मूल्य चुकाना होता है.कई स्थानों पर नक्सली गरीब आदिवासियों के बच्चों को अपनी कथित जनसेना में भर्ती करने के लिए बन्दूक दिखाकर दबाव डालते हैं और धमकी देते हैं कि जिंदा रहना है तो अपने बच्चे हमें सौंप दो.कई बार कोई चमचा किसी नेता को खुश करने के लिए भरी सभा में उसे जिन्दा आर्दश बताता है.

जबकि नेताजी का उन आदर्शों से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं होता.ऐसा भी कहते हैं कि आदमी मर जाता है पर विचार नहीं मरा करते.आज भी गांधीवाद,मार्क्सवाद आदि को अक्सर जिंदा बताया जाता है.कोई भी वाद जब तक धरातल पर नहीं उतरे तब तक उसका क्या मूल्य है?सिद्धांत तो फ़िर स्वप्न ही है वास्तविकता तो प्रयोग है.इस तरह हम कभी नारों में तो कभी भाषणों में किसी के जिंदा होने की बात बराबर सुनते रहते हैं.क्या हम सचमुच जिंदा हैं?अगर हम जिंदा हैं तो कैसे जिंदा हैं?क्या लक्षण हैं जिंदा रहने के?क्या सिर्फ शारीरिक रूप से जिंदा रहने मात्र से मानव को जीवित मान लिया जाना चाहिए?नहीं,बिलकुल नहीं!!

हमारे स्वार्थों ने धरती को बर्बाद कर दिया है.अभी भी ज्ञात आकाशीय पिंडों में सिर्फ धरती पर ही जीवन है.हालांकि हम मानव पिछले ५०-६० सालों से धरती के बाहर जीवन की तलाश में लगे हैं.अगर इसमें सफलता मिल भी जाती है तो हम इसका कितना फायदा उठा पाएँगे अभी भी यह भविष्य के गर्त में है.यह कितनी बड़ी बिडम्बना है कि संवेदनात्मक रूप से तो हम दम तोड़ रहे हैं और तलाश रहे हैं बर्बाद करने के लिए नए ग्रह-उपग्रह को.यूं तो धरती पर जीवों और जीवन की हजारों प्रजातियाँ हैं लेकिन मानव प्रकृति की सर्वश्रेष्ठ रचना माना जाता है.शायद ऐसा इसलिए हो कि ऐसा बतानेवाले हम मानव हैं.

पांच ज्ञानेन्द्रियाँ तो सभी जीवों में होती हैं इसलिए यह आधार तो नहीं हो सकता मानव को धरती का सर्वश्रेष्ठ जीव सिद्ध करने के लिए.बल्कि जो चीज मानव को सर्वश्रेष्ठ बनाती है वह है उसकी संवेदना,एक-दूसरे के सुख-दुःख से उसका प्रभावित होना.लेकिन पिछले सौ सालों में हुई वैज्ञानिक प्रगति ने इसकी सामूहिकता की भावना को क्रमशः कमजोर किया है.अब तो यह क्षरण इस महादशा में पहुँच गया है कि कभी-कभी मानव को मानव कहने में भी शर्मिंदगी महसूस होती है.पहले जहाँ राजतन्त्र में किसी भी व्यक्ति को बहादुरी का प्रदर्शन करने का पुरस्कृत किया जाता था,आज का शासन और समाज उसे अपने हाल पर मरने के लिए छोड़ देता है.अभी दो दिन पहले ही मेरे शहर हाजीपुर में बैंक डकैती की एक घटना हुई.अख़बारों ने पूरा ब्यौरा छापा कि किस तरह एक डकैत को भागते समय वहां मौजूद लोगों ने पकड़ लिया.लेकिन उसे पकड़ने की पहल करने वाले और इस क्रम में गंभीर रूप से घायल हो गए महादेव नामक ठेलेवाले का कहीं जिक्र नहीं था.

उसे और उसकी बहादुरी को तत्काल भुला दिया गया मीडिया द्वारा.गरीब जो ठहरा.खैर बैंक के सामने गोलगप्पे का ठेला लगाने वाले इस अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने अप्रतिम साहस का परिचय देते हुए डकैतों में से एक को पकड़ लिया लेकिन डकैतों द्वारा बम द्वारा प्रहार कर देने से घायल हो गया.घाव गंभीर था इसलिए उसे पी.एम.सी.एच.रेफर कर दिया गया,जहाँ वह उचित ईलाज नहीं होने के कारण तिल-तिल कर मर रहा है.न तो प्रशासन और न ही समाज उसके और उसके भूखे परिवार की सुध ले रहे हैं.भीषण गरीबी के कारण पढाई छोड़ चुका बेटा ईधर-उधर कर्ज के लिए मारा-मारा फ़िर रहा है लेकिन कोई रिश्तेदार या परिचित कर्ज नहीं दे रहा.क्या इस दशा में भी हम कह सकते हैं कि हम जिंदा हैं?

क्या लोकतंत्र जिसे जनता का,जनता के द्वारा और जनता के लिए शासन माना जाता है उसमें एक साहसी व समाजरक्षक की जान की यही कीमत है?फ़िर कोई क्यों जाए सार्वजनिक धन-संपत्ति की रक्षा के लिए जान पर खेलने?जब ओरिएंटल बैंक ऑफ़ कॉमर्स में डकैती हो रही थी तब भीड़-भरे राजेंद्र चौक पर हजारों लोग मौजूद थे लेकिन उनमें जिंदा तो बस एक महादेव ही था जो दिल में देशभक्ति के ज्वार के कारण डकैतों से भिड़ जाने की मूर्खता कर बैठा.क्या आवश्यकता थी उसे ऐसा करने की?बैंक लुट रहा था तो लुटने देता.उसका तो उस बैंक में तो क्या किसी भी बैंक में खाता तक नहीं था.जो गलती उसने की सो की लेकिन उसके प्रति हमारा क्या कर्त्तव्य बनता है?

क्या भीड़ में मौजूद इस एकमात्र जिंदा व्यक्ति की मौत हो जाएगी और हम उसे मर जाने देंगे?उसके मर जाने से एक लाभ तो होगा ही कि एक पेट कम हो जाएगा जनसंख्या विस्फोट का सामना कर रहे देश में.वैसे भी गरीबों की जिंदगी की कोई कीमत तो होती नहीं.लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारा अस्तित्व ऐसे ही चंद जिन्दा लोगों के चलते कायम है.वरना पूर्ण संवेदनहीनता की स्थिति में हम चाहे शारीरिक रूप से जीवित रहें भी तो मानव पद से गिर जायेंगे और हममें और पशु में कोई अंतर नहीं रह जाएगा.आज कोई अपराधी किसी को लूट रहा होता है,कोई घायल सड़क किनारे तड़प रहा होता है,किसी की ईज्जत सरेआम तार-तार कर दी जाती है और हजारों जोड़ी आँखें देखकर भी अनदेखा करती रहती हैं.इतना संवेदनहीन तो पशु भी नहीं होता और अगर कोई विरोध की हिम्मत करे भी तो बाद में महादेव की तरह अपने को अकेला पाता है.

कहाँ गई परोपकारः पुण्याय की भावना?कलम के जादूगर रामवृक्ष बेनीपुरी ने वर्षों पहले ही अपने निबंध गेंहूँ और गुलाब में पेट को गेहूं और मस्तिष्क को गुलाब मानते हुए कहा था कि अगर हमारे लिए गेंहूँ यानी पेट ही सबकुछ है तो फ़िर हम पशु हैं मानव हैं ही नहीं.बल्कि यह गुलाब यानी मस्तिष्क ही है जो हमें उनसे श्रेष्ठ बनाती है.तभी तो हमारे शरीर में पशुओं की तरह पेट और सिर एक ही रेखा में नहीं होते बल्कि मस्तिष्क पेट से काफी ऊपर,सबसे ऊपर होता है.गेंहूँ का गुलाब पर हावी हो जाना मानवता की हार है,मौत है.बढती मानव जनसंख्या के बीच मानवता की मौत पर चिंता व्यक्त करते हुए किसी शायर ने क्या खूब कहा है-जाने ये कैसा जहर दिलों में उतर गया,परछाई जिंदा रह गई इन्सान मर गया.
Read More »

Saturday, June 2, 2012

साईं संत या पापी?



 यान्ति देवव्रता देवान् पितृन्यान्ति पितृव्रताः
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपिमाम्

गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि भूत प्रेत, मूर्दा (खुला या दफ़नाया हुआ अर्थात् कब्र अथवा समाधि) को सकामभाव से पूजने वाले स्वयं मरने के बाद भूत-प्रेत ही बनते हैं.

एक मुस्लिम संत जो की हजारों करोडो पढ़े लिखे और अमिर लोगो, लेकिन मुर्ख हिन्दुओ के द्वारा पूजा जाता है | लाखो पढ़े लिखे हिंदू एक ऐसे मुस्लिम संत के अंध भक्त होकर पूजते है जिसे हम शिरडी के साईं बाबा के नाम से जानते है| वो संत जो खुद एक मस्जिद में रहता था, सबके सामने कुरान पढता था और एक ही संदेश देता था की मुझे मरने के बाद दफना देना,, ना की जला देना, पर अधिकतर मुर्ख लोग उसे समझ नहीं पाए और उसे अपने भगवानो से ऊपर दर्जा देकर एक ऐसे मुर्दे को पूजते है जो स्वयं एक मुसलमान है.

सिर्फ यही नहीं यह पाखंडी खुद को हिंदू देवी देवताओं का अंश बताता था स्वयं में नारायण, शिव, क्रिशन और राम जैसे हजारों देवी देवताओं के रूप में खुद की पूजा करवाता था पर हिंदू मुस्लिम एकता की बात जरुर करता था| ये एक पूरी तरह से एकतरफा कार्य है जिसमे सारा बलिदान केवल हिन्दुओ को ही देना पड़ता है जैसे की साईं राम, इस्लाम ग्रहण करना, मुस्लिम लड़के द्वारा हिंदू लड़की से शादी करना, और हिन्दुओ केबड़े धार्मिक स्थलों में मुसलमानों को ऊँचे पड़ देना आदि, और मुर्ख हिंदू इन बातो को मान भी लेता है बिना ये सोचे की परधर्म में जीना और उससे अपनाने पर लोक परलोक कही भी ठिकाना नहीं मिलता| साईं का केवल एक ही उद्देश्य था जो किसी समय अजमेर के मुस्लिम संत ख्वाजा मुइनुद्दीन चिस्ती ने आरम्भ किया था| साईं का कार्य केवल उस परम्परा का निर्वहन करते हुए हिंदू को और मुर्ख बना कर इस्लाम के और समीप लाकर उनका मतांतरण कराना था| आज भी ९०० सालो की इस्लामी गुलामी के बाद हिंदू धर्म कुछ कमजोर अवश्य हुआ है और इसे दूर करने के लिए ऐसे पाखंडियों के पाखंड और षड्यंत्र को मिटाने की आवश्यकता है|

बाबा शब्द फारसी और इस्लामी संस्कृति का एक शब्द है जिसका हिंदी या संस्कृत में कोई उल्लेख नहीं है परन्तु इसे दुस्प्रचारित किया गया की ये शब्द संस्कृत का है| बाबा एक सूफी संत को मिलने वाली पदवी या नाम है जो मलेशिया के मुस्लिम संतो को मिलती है जब उन्हें कोई इस्लामिक सम्मान मिलता है| बाबा शब्द असल में दादा(पिता के पिता) का ही दूसरा अर्थ है, बाद में ये उस व्यक्ति के लिए प्रयोग में होने लगा जो किसी सनातन संस्कृति को खतम करके इस्लामी सत्ता का ध्वज किसी देश में फहराता है| इसलिए एक तरह से साईं बाबा देश में इस्लामी ध्वज फहराने के लिए पूरी तरह से इस्लामी कठमुल्लो द्वारा प्रचारित किये जा रहे है|

अल्लाह मालिक शब्द ही इस्लामी सत्ता फैला कर साईं के द्वारा हिन्दुओ को मुर्ख बना कर उन्हें धर्म से डिगाना ये सबसे बड़ा उदहारण है साईं के मुस्लिम होने का पर साईं के अंधभक्त अक्सर इस जीते जागते सबूत को ख़ारिज करते रहे है साईं के असली नाम और उसके जनम को लेकर बहुत सी कथाये और कहानिया है यहाँ तक साईं नाम भी शिर्डी हेमाडपंत द्वारा श्री साईं सत्चरित्र में दिया गया है पर ये व्यक्ति कौन है और उसने ये किताब क्यों लिखी इसका आज तक कोई प्रमाण नहीं है और इस किताब का भी कोई एतिहासिक प्रमाण नहीं है की ये किसी हिन्दू द्वारा रचित है

साईं की ये असली फोटो देखिये, क्या इस फोटो में ये हिन्दू लगता है और क्या ऐसा लगता है की इसके अन्दर ऐसी कोई ताकत है जिससे ये लोगो के दुःख दूर कर सकता है. या फिर इसका पहनावा पूरी तरह से मुस्लिम होने के बाद भी ये हिन्दुओ को पूरी तरह से दिग्भ्रमित करके उन्हें मुर्ख बना रहा है ऐसी हजारो साईटस है जो साईं के चमत्कारों का प्रचार करती है जो पूरी तरह से झूठ और फरेब है..

शिरडी साईं की जिंदगी एक मस्जिद में व्यतीत हुई और उनका अधिकतर समय इस्लामी भगवान “अल्लाह” के लिए जाप करके कटी| लेकिन अधिकतर हिंदू साईं को एक अवतार और देवीय वरदान मान कर उसकी उसी तरह पूजा करते है जैसे की सनातन संस्कृति में की जाति है जो की पूरी तरह से गलत और सनातन संस्कृति के विरुद्ध है| कुछ साईं को स्वामी रामदास की तरह पूजते है तो कुछ शिव की तरह, वही कुछ भगवान दत्तात्रेय की तुलना साईं से करते है, अब तो कुछ सिक्ख भी गुरु नानक के तरह ही साईं को अवतार मान कर साईं को पूजने लगे है जो की खुद सिक्ख परंपरा के खिलाफ है| साईं का सबसे प्रसिद्ध वाक्य है “अल्लाह मालिक है” इसलिए साईं के हिंदू न होने के बहुत से प्रमाण होते हुए भी कुछ साईं भक्त इसे या ये कहते है को वो इसे संत मानते है या फिर कहते है की वे सिर्फ थोडा बहुत इसे मानते है| एक खास तरह का संगठन साईं को भगवन मानने पर उतारू है और साईं के पैसे का स्वयं के लिए उपभोग करके हिंदू मान्यतो को एक नए ही दृष्टिकोण बना रहे है|

कुछ मुर्ख लोगो ने हनुमान स्तुति और दुर्गा चालीसा की तर्ज पर साईं के नाम से साईं आरती और भजन संध्या जैसे जाने कितने ग्रन्थ लिख कर सनातन धर्म की प्राचीन प्रतिष्ठा को आघात पंहुचा कर हिन्दू धर्म को ही दूषित करने से बाज नहीं आ रहे है सनातन धर्म केवल वेड, पुराणों उपनिषदों और शास्त्रों पर आधारित है पर युवा पीढ़ी को जिस तरह से धर्म के नाम पर साईं का पाखंड दिखा कर सनातन धर्म से विमुख किया जा रहा है वो बहुत ही निंदनीय है

असल में साईं एक इस्लामिक बुद्धि का व्यक्ति और और अल्लाह का एक सिपाही है जिसका काम मुर्ख हिन्दुओ को अपने जाल में फस कर इस्लामिक सत्ता कायम करना है यही काम अजमेर के ख्वाजा चिस्ती ने किया था और दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन ने किया.. पर अक्सर लोग इस भूल में जीते रहते है की उनकी तो कब्र है पर साईं की तो मूर्ति है जिसे मुसलमान पूजते है नहीं है और यही पर लोग मुर्ख बन जाते है असल में कुरान के कहे अनुसार साम दाम दंड भेद जैसे भी हो इस्लामी सत्ता कायम करना ही मुसलमानों का फ़र्ज़ है जिसे पूरा करने में साईं ने पूरी इमानदारी दिखाई और आज उसकी इसी बात का फायदा मुसलमान उठा रहे है, यही नहीं जो लोग कहते है साईं की तो मूर्ति है तो उनके लिए एक जानकारी की साईं की एक समाधी या माजर भी है

ये जो नीचे फोटो है. ऐसे फोटो आजकल चोराहों पर लगाकार. भगवान का खुलेआम अपमान और हिन्दुओ को मूर्ख बनाया जा रहा है ? मुस्लिम साई के चक्कर में नहीं पड़ते. धर्म के पक्के है. सिर्फ अल्लाह.. हिन्दू प्रजाति ही हमेशा मूर्ख क्यो बनती है ?

Read More »