Saturday, June 2, 2012

साईं संत या पापी?



 यान्ति देवव्रता देवान् पितृन्यान्ति पितृव्रताः
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपिमाम्

गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि भूत प्रेत, मूर्दा (खुला या दफ़नाया हुआ अर्थात् कब्र अथवा समाधि) को सकामभाव से पूजने वाले स्वयं मरने के बाद भूत-प्रेत ही बनते हैं.

एक मुस्लिम संत जो की हजारों करोडो पढ़े लिखे और अमिर लोगो, लेकिन मुर्ख हिन्दुओ के द्वारा पूजा जाता है | लाखो पढ़े लिखे हिंदू एक ऐसे मुस्लिम संत के अंध भक्त होकर पूजते है जिसे हम शिरडी के साईं बाबा के नाम से जानते है| वो संत जो खुद एक मस्जिद में रहता था, सबके सामने कुरान पढता था और एक ही संदेश देता था की मुझे मरने के बाद दफना देना,, ना की जला देना, पर अधिकतर मुर्ख लोग उसे समझ नहीं पाए और उसे अपने भगवानो से ऊपर दर्जा देकर एक ऐसे मुर्दे को पूजते है जो स्वयं एक मुसलमान है.

सिर्फ यही नहीं यह पाखंडी खुद को हिंदू देवी देवताओं का अंश बताता था स्वयं में नारायण, शिव, क्रिशन और राम जैसे हजारों देवी देवताओं के रूप में खुद की पूजा करवाता था पर हिंदू मुस्लिम एकता की बात जरुर करता था| ये एक पूरी तरह से एकतरफा कार्य है जिसमे सारा बलिदान केवल हिन्दुओ को ही देना पड़ता है जैसे की साईं राम, इस्लाम ग्रहण करना, मुस्लिम लड़के द्वारा हिंदू लड़की से शादी करना, और हिन्दुओ केबड़े धार्मिक स्थलों में मुसलमानों को ऊँचे पड़ देना आदि, और मुर्ख हिंदू इन बातो को मान भी लेता है बिना ये सोचे की परधर्म में जीना और उससे अपनाने पर लोक परलोक कही भी ठिकाना नहीं मिलता| साईं का केवल एक ही उद्देश्य था जो किसी समय अजमेर के मुस्लिम संत ख्वाजा मुइनुद्दीन चिस्ती ने आरम्भ किया था| साईं का कार्य केवल उस परम्परा का निर्वहन करते हुए हिंदू को और मुर्ख बना कर इस्लाम के और समीप लाकर उनका मतांतरण कराना था| आज भी ९०० सालो की इस्लामी गुलामी के बाद हिंदू धर्म कुछ कमजोर अवश्य हुआ है और इसे दूर करने के लिए ऐसे पाखंडियों के पाखंड और षड्यंत्र को मिटाने की आवश्यकता है|

बाबा शब्द फारसी और इस्लामी संस्कृति का एक शब्द है जिसका हिंदी या संस्कृत में कोई उल्लेख नहीं है परन्तु इसे दुस्प्रचारित किया गया की ये शब्द संस्कृत का है| बाबा एक सूफी संत को मिलने वाली पदवी या नाम है जो मलेशिया के मुस्लिम संतो को मिलती है जब उन्हें कोई इस्लामिक सम्मान मिलता है| बाबा शब्द असल में दादा(पिता के पिता) का ही दूसरा अर्थ है, बाद में ये उस व्यक्ति के लिए प्रयोग में होने लगा जो किसी सनातन संस्कृति को खतम करके इस्लामी सत्ता का ध्वज किसी देश में फहराता है| इसलिए एक तरह से साईं बाबा देश में इस्लामी ध्वज फहराने के लिए पूरी तरह से इस्लामी कठमुल्लो द्वारा प्रचारित किये जा रहे है|

अल्लाह मालिक शब्द ही इस्लामी सत्ता फैला कर साईं के द्वारा हिन्दुओ को मुर्ख बना कर उन्हें धर्म से डिगाना ये सबसे बड़ा उदहारण है साईं के मुस्लिम होने का पर साईं के अंधभक्त अक्सर इस जीते जागते सबूत को ख़ारिज करते रहे है साईं के असली नाम और उसके जनम को लेकर बहुत सी कथाये और कहानिया है यहाँ तक साईं नाम भी शिर्डी हेमाडपंत द्वारा श्री साईं सत्चरित्र में दिया गया है पर ये व्यक्ति कौन है और उसने ये किताब क्यों लिखी इसका आज तक कोई प्रमाण नहीं है और इस किताब का भी कोई एतिहासिक प्रमाण नहीं है की ये किसी हिन्दू द्वारा रचित है

साईं की ये असली फोटो देखिये, क्या इस फोटो में ये हिन्दू लगता है और क्या ऐसा लगता है की इसके अन्दर ऐसी कोई ताकत है जिससे ये लोगो के दुःख दूर कर सकता है. या फिर इसका पहनावा पूरी तरह से मुस्लिम होने के बाद भी ये हिन्दुओ को पूरी तरह से दिग्भ्रमित करके उन्हें मुर्ख बना रहा है ऐसी हजारो साईटस है जो साईं के चमत्कारों का प्रचार करती है जो पूरी तरह से झूठ और फरेब है..

शिरडी साईं की जिंदगी एक मस्जिद में व्यतीत हुई और उनका अधिकतर समय इस्लामी भगवान “अल्लाह” के लिए जाप करके कटी| लेकिन अधिकतर हिंदू साईं को एक अवतार और देवीय वरदान मान कर उसकी उसी तरह पूजा करते है जैसे की सनातन संस्कृति में की जाति है जो की पूरी तरह से गलत और सनातन संस्कृति के विरुद्ध है| कुछ साईं को स्वामी रामदास की तरह पूजते है तो कुछ शिव की तरह, वही कुछ भगवान दत्तात्रेय की तुलना साईं से करते है, अब तो कुछ सिक्ख भी गुरु नानक के तरह ही साईं को अवतार मान कर साईं को पूजने लगे है जो की खुद सिक्ख परंपरा के खिलाफ है| साईं का सबसे प्रसिद्ध वाक्य है “अल्लाह मालिक है” इसलिए साईं के हिंदू न होने के बहुत से प्रमाण होते हुए भी कुछ साईं भक्त इसे या ये कहते है को वो इसे संत मानते है या फिर कहते है की वे सिर्फ थोडा बहुत इसे मानते है| एक खास तरह का संगठन साईं को भगवन मानने पर उतारू है और साईं के पैसे का स्वयं के लिए उपभोग करके हिंदू मान्यतो को एक नए ही दृष्टिकोण बना रहे है|

कुछ मुर्ख लोगो ने हनुमान स्तुति और दुर्गा चालीसा की तर्ज पर साईं के नाम से साईं आरती और भजन संध्या जैसे जाने कितने ग्रन्थ लिख कर सनातन धर्म की प्राचीन प्रतिष्ठा को आघात पंहुचा कर हिन्दू धर्म को ही दूषित करने से बाज नहीं आ रहे है सनातन धर्म केवल वेड, पुराणों उपनिषदों और शास्त्रों पर आधारित है पर युवा पीढ़ी को जिस तरह से धर्म के नाम पर साईं का पाखंड दिखा कर सनातन धर्म से विमुख किया जा रहा है वो बहुत ही निंदनीय है

असल में साईं एक इस्लामिक बुद्धि का व्यक्ति और और अल्लाह का एक सिपाही है जिसका काम मुर्ख हिन्दुओ को अपने जाल में फस कर इस्लामिक सत्ता कायम करना है यही काम अजमेर के ख्वाजा चिस्ती ने किया था और दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन ने किया.. पर अक्सर लोग इस भूल में जीते रहते है की उनकी तो कब्र है पर साईं की तो मूर्ति है जिसे मुसलमान पूजते है नहीं है और यही पर लोग मुर्ख बन जाते है असल में कुरान के कहे अनुसार साम दाम दंड भेद जैसे भी हो इस्लामी सत्ता कायम करना ही मुसलमानों का फ़र्ज़ है जिसे पूरा करने में साईं ने पूरी इमानदारी दिखाई और आज उसकी इसी बात का फायदा मुसलमान उठा रहे है, यही नहीं जो लोग कहते है साईं की तो मूर्ति है तो उनके लिए एक जानकारी की साईं की एक समाधी या माजर भी है

ये जो नीचे फोटो है. ऐसे फोटो आजकल चोराहों पर लगाकार. भगवान का खुलेआम अपमान और हिन्दुओ को मूर्ख बनाया जा रहा है ? मुस्लिम साई के चक्कर में नहीं पड़ते. धर्म के पक्के है. सिर्फ अल्लाह.. हिन्दू प्रजाति ही हमेशा मूर्ख क्यो बनती है ?

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