Friday, November 9, 2012

भगवान् राम और माँ सीता के विवाह से सम्बंधित कुछ भ्रान्तियो का जबाब

हाल ही में नेट पर देखा की कुछ विशिष्ट जन को भगवान राम और माँ सीता के विवाह के सन्दर्भ में कुछ भ्रान्ति है. कुछ तर्क वाल्मीकि रामायण से लेकर ये निष्कर्ष निकला जा रहा है की विवाह के वक़्त माँ सीता की उम्र महज छ साल की थी, जो कतई सही नहीं है.

जैसा की हम सब जानते है, समय के साथ साथ लोगो ने धर्म को अपनी सुविधा और धर्म के व्यापार के हिसाब से तोड़ मरोड़ दिया है. उदहारण के तौर पर हिन्दू धर्म में के कुछ कुख्यात बाबाओ के कारनामे हमने पिछले एक महीनो में हर हफ्ते देखे सुने और पढ़े है. ठीक वैसे ही मुस्लिम धर्म में कुछ लोग मानते है की किसी भी बेगुनाह को मारने वाले को अल्लाह कभी माफ़ नहीं करता वही मुस्लिम कुछ लोग इस तरह के खून खराबे को अल्लाह के रसूल का हुकुम मान कर आतंक को धर्म का पर्याय बनाने को आतुर है. कहने का तात्पर्य ये है की समय के साथ साथ मान्यताये बदली और फिर अल्पबुद्धि लोगो ने धर्म ग्रंथो का अपनी सुविधा के हिसाब से व्याख्यान कर दिया. कहा भी गया है धर्म प्रदर्शन की नहीं अपितु धारण करने की चीज़ है. धर्म वो है जो व्यक्ति को संयमी बनाता है.

राम जन्म :बाल काण्ड सर्ग १८ शलोक ८-९-१० में महार्षि वाल्मीक जी ने उल्लेख किया है कि श्री राम जी का जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अभिजित महूर्त में मध्याह्न में हुआ था। कंप्यूटर द्वारा गणना करने पर यह २१ फरवरी, ५११५ ई पू आता है। इस दिन नवमी तो आती है लेकिन नक्षत्र पुष्य आता है। नवमी तिथि के बारे में तुलसी राम चरितमानस में भी उल्लेख मिलता है एवं रामनवमी चैत्र शुकल की नवमी को ही मनाई जाती है। बाल काण्ड के दोहा १९० के बाद की प्रथम चौपाई में तुलसीदास जी लिखते हैं

नौमी तिथि मधुमास पुनीता, सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता |मध्य दिवस अति सीत न धामा , पावन काल लोक विश्रामा ||

पवित्र चैत्र मास के शुकल पक्ष की नवमी तिथि को मधाहं में अभिजित महूर्त में श्री राम का जन्म हुआ था। अतः नवमी तिथि को आधार मान कर एवं नक्षत्र की अनदेखी कर राम नवमी तिथि की गणना करते हैं तो २१ फरवरी ५११५ ई पू प्राप्त होती है। इस प्रकार राम जन्म को ७१२५ वर्ष पूरे हो चुके है.

तपोवन :श्री राम १६वे वर्ष में ऋषी विश्वमित्र के साथ तपोवन को गए थे। इस तथ्य की पुष्टि वाल्मीक रामायण के बाल काण्ड के वीस्वें सर्ग के शलोक दो से भी हो जाती है, जिसमे राजा दशरथ अपनी व्यथा प्रकट करते हुए कहते हैं- उनका कमलनयन राम सोलह वर्ष का भी नहीं हुआ और उसमें राक्षसों से युद्ध करने की योग्यता भी नहीं है।

उनषोडशवर्षो में रामो राजीवलोचन: न युद्धयोग्य्तामास्य पश्यामि सहराक्षसौ॥ (वाल्मीक रामायण /बालकाण्ड /सर्ग २० शलोक २)

चूँकि भगवान राम विश्वामित्र के साथ सोलह वर्ष की उम्र में गए थे और उसके बाद ही उनका विवाह हुआ था इसे ये सिद्ध हो जाता है की प्रभु रामकी शादी सोलह वर्ष के उपरान्त हुई थी. माँ सीता की उम्र के विषय में वाल्मीकि रामायण के जिन श्लोको से निष्कर्ष निकला जा रहा है, वे श्लोक है :

उषित्वा द्वा दश समाः इक्ष्वाकुणाम निवेशने | भुंजाना मानुषान भोगतसेव काम समृद्धिनी || ३-४७-४ ||मम भर्ता महातेजा वयसा पंच विंशक ||३-४७-१० ब || अष्टा दश हि वर्षिणी नान जन्मनि गण्यते ||३-४७-११ अ ||गौर से ध्यान दे की पहले श्लोक में द्वा और दश शब्द अलग अलग है. येद्वादश यानि बारह नहीं बल्कि द्वा ”दो” को और दश ”दशरथ” कोसंबोधित करता है. इसमें माँ सीता, रावन से, कह रही है की इक्ष्वाकु केराजा दशरथ के यहाँ पर दो वर्ष में उन्हें हर प्रकार के वे सुख जो मानव के लिए उपलब्ध है उन्हें प्राप्त हुए है.

दुसरे श्लोक में माँ सीता कह रही है की उस समय (वनवास प्रस्थान के समय) मेरे तेजस्वी पति की उम्र पच्चीस साल थी और उससमय मैं जन्म से अठारह वर्ष की हुई थी. इसे ये ज्ञात होता है की वनवास प्रस्थान के समय माँ सीता की उम्र अठारह साल की थी औरवो करीब दो साल राजा दशरथ के यहाँ रही थी यानि माँ सीता की शादी सोलह साल की उम्र के आस पास हुई थी. ये केवल सोच और समझ का फेर है.

द्वादश को एक साथ जोड़ने पर ये बारह वर्ष बन जाते है और द्वा यानि दो और दश यानि दशरथ को विच्छेद करने पर एक नवीन अर्थ आ जाता है. इसी कारण कुछ टीकाकारो ने ये मान लिया की सीता जी को विवाह उपरांत बारह वर्ष अयोध्या में रही थी और इस गणित के हिसाब से माँ सीता को विवाह के समय छ वर्ष का मान लिया है.

उदहारण के तौर पर मान लीजिये कोई कहना चाह रहा है कि “उस समय छोटे बच्चो को कमरे में बंद रखा जाता था” लेकिन इस वाक्य में एक रिक्त स्थान अपने स्थान से एक शब्द आगे सरक जाता है तो ये वाक्य कुछ यूँ बन जायेगा “उस समय छोटे बच्चो को कमरे मेंबंदर खा जाता था”. देखा आपने एक रिक्त स्थान के केवल एक वर्णाक्षर से आगे बढ़ जाने पर वाक्य के अर्थ का कैसा अनर्थ हो गया. क्या कहना चाह रहे थे और क्या कह दिया. अब जब हमारे वेद और ग्रन्थ जो सदियों पहले लिखे गए थे. पेड़ के पत्तो पर लिखे  हुए उन श्लोको को आज अगर हम किताब में छपा हुआ  देखते है तो स्वाभाविक है की इतने रूपांतरण के दौरान  उनका अपने मूल रूप से थोडा बहुत परिवर्तित होना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है.

भगवान् ने इसीलिए सबको अक्ल दी है ताकि हम इसका सही इस्तेमाल करे और खुले दिमाग से सोच कर और अपनी समझ के हिसाब से इनकी सही व्याख्या कर सके. तुलसी रामायण में और भी कई दृष्टांत है, जिसमे माँ सीता को विवाह के समय किशोर अवस्था का बतलाया गया है न की बाल्यावस्था का. पुष्पवाटिका में सीता जी जब माँ भवानी का पूजन के लिए आई थी तो उस समय तुसलीदास जी ने लिखा है :संग सखीं सब सुभग सयानीं। गावहिं गीत मनोहर बानीं॥यानी सीता जी के साथ में सब सुंदरी और सयानी सखियाँ हैं, जो मनोहर वाणी से गीत गा रही हैं। “सयानी” शब्द से साफ़ है की माँ सीता बाल्यावस्था को पार कर गई है.

आज शायद इन चीजो को न तो को ढंग से समझने वाला शिष्य है और न ही समझाने वाला गुरु. और फिर ये अपनी अपनी सोच और भावना है क्योनी तुलसी बाबा ने रामचरितमानस में लिखा है, “जिनकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखि तिन तैसी”. मानो तो भगवान् नहीं मानो तो पत्थर.

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