Monday, June 17, 2013

हिन्दु सम्राट पृथ्वीराज चौहान (सन् 1149-1192)

हिन्दु सम्राट पृथ्वीराज चौहान (सन् 1149-1192)


हिन्दु सम्राट पृथ्वीराज चौहान (सन् 1149-1192)

हिन्दुओ के सम्राट पृथ्वीराज चौहान (सन् 1149-1192) चौहान वंश के हिंदू क्षत्रिय राजा थे जो उत्तरी भारत में 12 वीं सदी के उत्तरार्ध के दौरान अजमेर और दिल्ली पर राज्य करते थे।

पृथ्वीराज को 'राय पिथौरा' भी कहा जाता है। वह चौहान राजवंश का प्रसिद्ध राजा थे। पृथ्वीराज चौहान का जन्म अजमेर राज्य के वीर राजपूत महाराजा सोमश्वर के यहाँ हुआ था। उनकी माता का नाम कपूरी देवी था जिन्हेँ पूरे बारह वर्ष के बाद पुत्र रत्न कि प्राप्ति हुई थी। पृथ्वीराज के जन्म से राज्य मेँ राजनीतिक खलबली मच गई उन्हेँ बचपन मेँ ही मारने के कई प्रयत्ऩ किए गए पर वे बचते गए। पृथ्वीराज चौहान जो कि वीर राजपूत योधा थे बचपन से ही वीर और तरवारबाजी के शौकिन थे। उन्होँने बाल अव्सथा मेँ ही शेर से लड़ाई कर उसका जबड़ा फार डाला पृथ्वीराज ने अपनी राजधानी दिल्ली का नवनिर्माण किया कहा जाता है कि पृथ्वीराज की सेना में तीन सौ हाथी तथा 3,00,000 सैनिक थे, जिनमें बड़ी संख्या में घुड़सवार भी थे.

तराइन का प्रथम युद्ध (गौरी की पराजय)
थानेश्वर से १४ मील दूर और सरहिंद के किले के पास तराइन नामक स्थान पर यह युद्ध लड़ा गया। तराइन के इस पहले युद्ध में राजपूतो ने गौरी की सेना के छक्के छुड़ा दिए। गौरी के सैनिक प्राण बचा कर भागने लगे। जो भाग गया उसके प्राण बच गए, किन्तु जो सामने आया उसे गाजर-मुली की तरह कट डाला गया। मुहम्मद गौरी युद्ध में बुरी तरह घायल हुआ।

अपने ऊँचे तुर्की घोड़े से वह घायल अवस्था में गिरने ही वाला था की युद्ध कर रहे एक उसके सैनिक की दृष्टि उस पर पड़ी। उसने बड़ी फुर्ती के साथ सुल्तान के घोड़े की कमान संभल ली और कूद कर गौरी के घोड़े पर चढ़ गया और घायल गौरी को युद्ध के मैदान से निकाल कर ले गया। नेतत्वविहीन सुल्तान की सेना में खलबली मच चुकी थी। तुर्क सेनिक राजपूत सेना के सामने भाग खड़े हुए।

पृथ्वीराज की सेना ने ८० मील तक इन भागते तुर्कों का पीछा किया। पर तुर्क सेना ने वापस आने की हिम्मत नहीं की। इस तरह चौहान ने गोरी को १७ बार खदेड़ा, राजपुता की प्रथा है की वो निहत्थे दुश्मन पर हमला नहीं करते थे .इसी का फयदा उठाकर गोरी बार बार बचता गया और सम्राट चौहान के पेरो में गिर कर माफ़ी मांग लेता...

पृथ्वीराज चौहान द्वारा राजकुमारी संयोगिता का हरण करके इस प्रकार कनौज से ले जाना रजा जयचंद को बुरी तरह कचोट रहा था। उसके ह्रदय में अपमान के तीखे तीर से चुभ रहे थे। वह किसी भी कीमत पर पृथ्वीराज का विध्वंश चाहता था। भले ही उसे कुछ भी करना पड़े। जयचंद ने राजपूतो के सभी भेद खोल दिए और गोरी की खुल कर मदत की. भयंकर युद्ध के बाद चौहान तथा राज कवि चंदबरदाई को बंदी बना लिया गया। युद्धबंधी के रूप में उसे गौरी के सामने ले जाया गया। जहाँ उसने गौरी को घुर के देखा। गौरी ने उसे आँखें नीची करने के लिए कहा।

पृथ्वीराज ने कहा की राजपूतो की आँखें केवल मृत्यु के समय नीची होती है। यह सुनते ही गौरी आगबबुला होते हुए उठा और उसने सेनिको को लोहे के गरम सरियों से उसकी आँखे फोड़ने का आदेश दिया। असल कहानी यहीं से शुरू होती है। पृथ्वीराज को रोज अपमानित करने के लिए रोज दरबार में लाया जाता था। जहाँ गौरी और उसके साथी पृथ्वीराज का मजाक उड़ाते थे। उन दिनों पृथ्वीराज अपना समय अपने जीवनी लेखक और कवी चंद् बरदाई के साथ बिताता था। चंद् ने 'पृथ्वीराज रासो' नाम से उसकी जीवनी कविता में पिरोई थी। उन दोनों को यह अवसर जल्द ही प्राप्त हो गया जब गौरी ने तीरंदाजी का एक खेल अपने यहाँ आयोजित करवाया।

पृथ्वीराज ने भी खेल में शामिल होने की इच्छा जाहिर की परन्तु गौरी ने कहा की वह कैसे बिना आँखों के निशाना साध सकता है। पृथ्वीराज ने कहा की यह उनका आदेश है। पर गौरी ने कहा एक राजा ही राजा को आदेश दे सकता है तब चाँद ने पृथ्वीराज के राजा होने का वर्तन्त कहा। गौरी सहमत हो गया और उसको दरबार में बुलाया गया। वहां गौरी ने पृथ्वीराज से उसके तीरंदाजी कौशल को प्रदर्शित करने के लिए कहा। चंद बरदाई ने पृथ्वीराज को कविता के माध्यम से प्रेरित किया।

जो इस प्रकार है-
"चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण,
ता ऊपर सुल्तान है मत चुके चौहान।"

पृथ्वीराज चौहान ने तीर को गोरी के सीने में उतार दिया और वो वही तड़प तड़प कर मर गया ।

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ये हैँ हिँदुस्तान मेरी जान

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