Monday, June 17, 2013
Hathor Goddess
About Hathor Goddess
अत्यन्त प्राचीनकाल से ही मिस्र देश में गाय-बैलों की पूजा होती चली आई है| मिश्रवासियों की प्रसिद्ध आराध्य-देवी `हथोर' गौ ही है| यहां की नील नदी की उपमा दुधारु गाय से दी जाती रही है| नील नदी के तट पर सात प्रकार के देवताओं की मूर्तियां स्थित है| जब इस नदी में बाढ़ आती है, तो इन देवताओं की पूजा की जाती है और गायों का एक विशाल जुलूस निकाल जाता है|
मिश्रवासी `हथोर' गौ के समान `आपिस' बैल की भी पूजा करते है| यहां होता है कि मिश्र की प्राचीन संस्कृति ईसा से लगभग पांच सहस्र वर्ष पूर्व विद्यमान थी तथा यहां गाय-बैलों की पूजा होती थी| मिश्र में गौहत्या पूर्णत: निषिद्ध थी| गौ-हत्यारों को प्राणदण्ड मिलता था| जिस प्रकार हिन्दुओं का विश्वास है कि मृत्यु के पश्चात् आत्मा गौकी पूंछ पकड़कर वैतरणी पार करती है, उसी प्रकार मिश्रवासियों के धर्मशास्त्र में लिखा है कि मृत प्राणी गौ की पूंछ पकड़कर नील नदी पार करता है| हिरोडोटस लिखता है कि मिश्रवासी बैलों का वध करते थे, किन्तु गौ की हत्या नहीं करते थे| उक्त तथ्यों से जान पड़ता है कि किसी सुदुर अतीतकाल में भारत के ही लोगों ने एशियाई देशों में होते हुए मिश्र तक पहुंचकर वहां अपनी संस्कृति का प्रसार किया था|
इतिहास की आदिम अवस्था में आयों के साम्राज्य का इतना विस्तार था कि कुछ भागों के अतिरिक्त समस्त यूरोप और सम्भवत: उत्तरी रूस का पर्याप्त साम्राज्य तथा एशिया में एशिया माइनर, काकेशिया, मीडिया, पर्शिया, भारत और मध्यवर्ती बेक्टीरिया तक समाविष्ट था| इस प्रकार अन्य देशों की भांति भारत और ईरान के पारस्परिक सम्बन्ध भी आर्यों के समय से ही हैं| `ईरान' शब्द `आर्याना' का अपभ्रंश माना जाता है| विद्धानों के मतानुसार सहस्रों वर्ष पूर्व ईरान भारतीय उपनिवेश ही था| प्राचीन मध्य प्रदेश में रहनेवाले `पर्सु' वंश के लोग बिलोचिस्तान के मार्ग से वर्तमान ईरान की भूमि पर पहुंचे और वहां `परशु' अथवा `पर्शु' नामक देश बसाया|
http://en.wikipedia.org/wiki/Hathor
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