द्रोपदी महाभारत की एक आदर्श पात्र है। लेकिन द्रोपदी जैसी विदुषी नारी के साथ हमने बहुत अन्याय किया है। सुनी सुनाई बातों के आधार पर हमने उस पर कई ऐसे लांछन लगाये हैं जिससे वह अत्यंत पथभ्रष्ट और धर्म भ्रष्ट नारी सिद्घ होती है। एक ओर धर्मराज युधिष्ठर जैसा परमज्ञानी उसका पति है, जिसके गुणगान करने में हमने कमी नही छोड़ी। लेकिन द्रोपदी पर अतार्किक आरोप लगाने में भी हम पीछे नही रहे।
द्रोपदी पर एक आरोप है कि उसके पांच पति थे। हमने यह आरोप महाभारत की साक्षी के आधार पर नही बल्कि सुनी सुनाई कहानियों के आधार पर लगा दिया। बड़ा दु:ख होता है जब कोई पढ़ा लिखा व्यक्ति भी इस आरोप को अपने लेख में या भाषण में दोहराता है। ऐसे व्यक्ति की बुद्घि पर तरस आता है, और मैं सोचा करता हूं कि ये लोग अध्ययन के अभाव में ऐसा बोल रहे हैं, पर इन्हें यह नही पता कि ये भारतीय संस्कृति का कितना अहित कर रहे हैं।
आईए महाभारत की साक्षियों पर विचार करें! जिससे हमारी शंका का समाधान हो सके कि द्रोपदी के पांच पति थे या एक, और यदि एक था तो फिर वह कौन था?
जिस समय द्रोपदी का स्वयंवर हो रहा था उस समय पांडव अपना वनवास काट रहे थे। ये लोग एक कुम्हार के घर में रह रहे थे और भिक्षाटन के माध्यम से अपना जीवन यापन करते थे, तभी द्रोपदी के स्वयंवर की सूचना उन्हें मिली। स्वयंवर की शर्त को अर्जुन ने पूर्ण किया। स्वयंवर की शर्त पूरी होने पर द्रोपदी को उसके पिता द्रुपद ने पांडवों को भारी मन से सौंप दिया। राजा द्रुपद की इच्छा थी कि उनकी पुत्री का विवाह किसी पांडु पुत्र के साथ हो, क्योंकि उनकी राजा पांडु से गहरी मित्रता रही थी। राजा दु्रपद पंडितों के भेष में छुपे हुए पांडवों को पहचान नही पाए, इसलिए उन्हें यह चिंता सता रही थी कि आज बेटी का विवाह उनकी इच्छा के अनुरूप नही हो पाया। पांडव द्रोपदी के साथ अपनी माता कुंती के पास पहुंच गये।
माता कुंती ने क्या कहा
पांडु पुत्र भीमसेन, अर्जुन, नकुल और सहदेव ने प्रतिदिन की भांति अपनी भिक्षा को लाकर उस सायंकाल में भी अपने ज्येष्ठ भ्राता युधिष्ठर को निवेदन की। तब उदार हृदया कुंती माता द्रोपदी से कहा-’भद्रे! तुम भोजन का प्रथम भाग लेकर उससे बलिवैश्वदेवयज्ञ करो तथा ब्राहमणों को भिक्षा दो। अपने आसपास जो दूसरे मनुष्य आश्रित भाव से रहते हैं उन्हें भी अन्न परोसो। फिर जो शेष बचे उसका आधा हिस्सा भीमसेन के लिए रखो। पुन: शेष के छह भाग करके चार भाईयों के लिए चार भाग पृथक-पृथक रख दो, तत्पश्चात मेरे और अपने लिए भी एक-एक भाग अलग-अलग परोस दो। उनकी माता कहती हैं कि कल्याणि! ये जो गजराज के समान शरीर वाले, हष्ट-पुष्ट गोरे युवक बैठे हैं इनका नाम भीम है, इन्हें अन्न का आधा भाग दे दो क्योंकि यह वीर सदा से ही बहुत खाने वाले हैं।
महाभारत की इस साक्षी से स्पष्ट है कि माता कुंती से पांडवों ने ऐसा नही कहा था कि आज हम तुम्हारे लिए बहुत अच्छी भिक्षा लाए हैं और न ही माता कुंती ने उस भिक्षा को (द्रोपदी को) अनजाने में ही बांट कर खाने की बात कही थी। माता कुंती विदुषी महिला थीं, उन्हें द्रोपदी को अपनी पुत्रवधु के रूप में पाकर पहले ही प्रसन्नता हो चुकी थी।
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